पाण्डुलिपियाँ हमारे देश की धरोहर

 पाण्डुलिपियाँ हमारे देश की धरोहर


नालन्दा का इतिहास अत्यन्त गौरवशाली रहा है।  शिक्षा के क्षेत्र में इसे विश्व गुरू की उपाधि से सम्बोधित करना अतिश्योक्ति नहीं होगी। नालंदा के आचार्यों ने न केवल स्वदेश बल्कि विदेशों में भी भारतीय ज्ञान, संस्कृति, कला आदि को प्रचारित-प्रसारित किया है। फलस्वरुप नालन्दा की गरिमा को पुर्नस्थापित करने हेतु बिहार सरकार ने सन् 1951 ई. में बौद्ध अध्ययन–अध्यापन के केन्द्र के रूप में नव नालन्दा महाविहार की स्थापना की जो अपने विकास क्रम के विभिन्न सोपानों को पार कर आज संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार के अधीन सम विश्वविद्यालय के रूप में स्थापित है।

संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा संचालित राष्ट्रीय पाण्डुलिपि मिशन ने महाविहार के अंर्तगत् मई 2005 को 'पाण्डुलिपि संसाधन केन्द्र' स्थापित किया। तब से लेकर इस केन्द्र के द्वारा नालंदा जिला के अतिरिक्त नवादा, पटना, गया, औरंगाबाद आदि जिलों में 26,000 पाण्डुलिपियों की खोज की है, जिसमें 22,200 पाण्डुलिपियों का इलेक्ट्रोनिक डाटा भी तैयार कर लिया गया है। 


पाण्डुलिपियाँ हमारी विरासत हैं, ये संस्कृति का महत्वपूर्ण अंश होते हैं। ये पाण्डुलिपियाँ हमारी प्राचीन जीवन शैली को दर्शाती है। हम सांस्कृतिक सभ्यता और ऐतिहासिक श्रृंखला को विकसित ही नहीं बल्कि उन्हें धरोहर समझ कर सींचते भी हैं। ये ग्रन्थ, चित्र, प्रलेख, ताड़पत्र, पाण्डुलिपियां विभिन्न आकारों में प्राप्त हैं। 

सर्वेक्षण द्वारा ऐसी जानकारी प्राप्त हुई है कि विश्व में सर्वाधिक पाण्डुलिपियाँ भारत वर्ष में उपलब्ध है। प्राचीन काल में देश के शासकों ने पाण्डुलिपियों के संग्रह में रुचि दिखाई थी ।  फलस्वरूप हमारे देश में लाखों पाण्डुलिपियाँ विरासत और धरोहर के रूप में उपलब्ध है। ये सारे पाण्डुलिपियाँ विश्वविद्यालय के पुस्तकालयों, व्यक्तिगत  पुस्तकालयों, संग्रहालयों, मंदिरों, खानकाहों, मजारों आदि के संग्रहों में उपलब्ध हैं। इनमें से कई ऐसे लोग भी हैं जिनके पास अपना व्यक्तिगत संग्रह भी है। नव नालंदा महाविहार के पुस्तकालय के पाण्डुलिपि विभाग में भी कई महत्वपूर्ण पाण्डुलिपियों का संग्रह है, जो हमारे लिए अत्यंत ही गर्व की बात है। महाविहार में रखे पाण्डुलिपियों का रख-रखाव आधुनिक तरीके से न कर पारंपरिक तरीके से किया जाता है। 


इन दुर्लभ पाण्डुलिपियों को हम किस तरह सुरक्षित रखें कि आने वाली पीढ़ियों के लिये ये सुरक्षित रह सके। इस क्षेत्र में राष्ट्रीय पाण्डुलिपि मिशन, भारत सरकार द्वारा व्यापक स्तर पर कार्य किया जा रहा है:-

पाण्डुलिपियों को दीमक, सिलवर फिश, पानी, धूप, बुक लाइस आदि शत्रुओं से सुरक्षा करनी चाहिए। इसकी उचित देखभाल करनी चाहिए जैसे सेलोटेप और लोहे के पिन से सुरक्षा । धूल, मिट्टी, नमी से सुरक्षा होनी चाहिए। दीमक और चूहों से बचाव करनी चाहिए। इन ग्रंथों को लाल रंग के सूती कपड़ों से लपेट कर मजबूत कागज के डाकेट बना कर और उसके बीच ग्रंथ को रख कर बांधना चाहिए।



मैं आम नागरिकों से आह्वान करना चाहूँगा कि वे पाण्डुलिपि को राष्ट्रीय धरोहर समझ कर उन्हें सुरक्षित रखें। पाण्डुलिपि रख-रखाव की जानकारी हेतु नव नालंदा महाविहार (सम विश्वविद्यालय), नालंदा स्थित पाण्डुलिपि संसाधन केन्द्र सदैव मदद हेतु तैयार है।

लेखक:

डॉ. दीपंकर लामा
पूर्व - परियोजना समन्वयक
पाण्डुलिपि संसाधन केंद्र
नव नालंदा- महाविहार, नालंदा
(सम विश्वविद्यालय)

डीन एकेडेमिक्स,
नव नालंदा महाविहार
(सम विश्वविद्यालय)
(संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार)
नालंदा- ८०३१११ (बिहार) भारत



राष्ट्रीय पाण्डुलिपि मिशन, नई दिल्ली
पाण्डुलिपि संरक्षण केन्द्र
नव नालंदा महाविहार
(सम विश्वविद्यालय)
(संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार)
नालंदा- ८०३१११ (बिहार) भारत

Comments

Popular posts from this blog

नव नालंदा महाविहार का 73वां स्थापना- दिवस 20 व 21 नवम्बर को मनाया जायेगा !

Unveiling the Treasures: Exploring the Ancient Manuscripts Collections of Nava Nalanda Mahavihara, Nalanda

Advantages of doing P.G. Diploma Course in Vipassana & Yoga